अध्यात्म योगी आचार्य श्री चन्दन मुनि जी अद्भुत शब्द शिल्पी थे। साहित्य भाण्डागार को समृद्ध बनाने के लिये उनकी लेखनी अविश्रान्त यात्रा करती रही। जीवन के 87 वें वर्ष तक वे नियमित रूप से कुछ न कुछ लिखते हुए मां शारदा की सेवा में अपने श्रद्धा पुष्प अर्पित करते रहे। उनकी जन्मजात प्रतिभा को विकसित, पल्लवित और पुष्पित होने के लिये एक गृहत्यागी, पादविहारी संन्यासी की चर्या का प्रयोग मिल गया। अनेकों प्रांतों,नगरों,ग्रामों और ग्रामटिकाओं तक सुन्दर, स्वच्छ राजपथ और धूलभरी पगडण्डियों पर सतत गतिशील यायावर का अनुभव भण्डार नित्य नये मणिरत्नों से आपूरित होता रहता है, छलकता रहता है।लोक जीवन की विविधताओं , मानव मन की जटिलताओं,नित्य नवीन परिचित व्यक्तियों की समस्याओं तथा भाषा-व्यवहार को उनके बीच से गुजरता पदयात्री जितना जानता-समझता है उतना वातानुकूलित कक्ष में बैठकर शोध करने वालों के लियें सहज सुगम नहीं होता। पुस्तकों में लिखे लम्बे निबन्ध और कागजों पर उतरे आंकड़े कई बार वास्तविकता से बहुत दूर रह जाते हैं। जनजीवन में घुलने मिलने वाला उसके यथार्थ के आमने-सामने होता है। पूज्य गुरूदेव और उनकी साहित्य साधना को शिकार तक पहुंचाने में असाधारण रूप से सहयोगी बना हैं। उन्होंने संस्कृत, प्राकृत जैसी प्राच्यभाषाओं में विद्वद्योग्य साहित्य की रचना की गई है। वे ग्रन्थ उच्च कोटि के विद्वानों द्वारा पढे और सराहे गये हैं। उनकी विद्वत्ता समान रूप से जन साधारण के लिये सुपाठ्य साहित्य रचना में भी मुखर रही है। हिन्दी उनके विचार संप्रेषण की मूल भाषा रही है। हिन्दी में गद्य एंव पद्य दोनों विद्याओं में उन्होंने प्रचुरता से लिखा है और उनका साहित्य अपनी सुगमता-सरलता के कारण जनसाधारण के लिए प्रिय एवं रूचिकर रहा है। इसके साथ ही साथ राजस्थानी, गुजराती, पंजाबी आदि प्रादेशिक भाषाओं में भी उन्होंने औपदेशिक व्याख्यान एवं भजन लिखे है। विशेषतः उनके भजनों की भाषा विहार क्षेत्रों के साथ बदलती रही है। उन-उन क्षेत्रों में प्रचलित कहावतें, लोकोक्तियों, प्रेरक प्रसंगों गैर लोक कथाओं को भी पूज्य श्री ने प्रचुरता से उपयोग में लिया है। विभिन्न राग रागिनियों में गुंथ कर इतने सरस और मधुर बना दिए कि वे प्रसंग प्रादेशिकता के सीमित क्षेत्र का अतिक्रमण कर सर्वग्राह्य बन गये हैं।साम्प्रदायिक आग्रहों से मुक्त उनका मानस ज्ञानी, तपस्वी, महाप्राण संतो के प्रति सदैव श्रद्धानत रहा। इसलिए उनके साहित्य से प्राप्त तत्व नवनीत को भी उन्होंने अपने विचारों के साथ सादर प्रस्तुति दी है। आचार्य श्री चन्दन मुनि का साहित्य परम्परा बद्ध विचारों एवं आग्रहों की छाया से सर्वथा मुक्त है। जब, जहाँ और जिससे कुछ ग्राह्य मिला उसे उन्मुक्त मन से ग्रहण किया और अवसर आने पर खुले हाथों बांटा। यही उनकी लेखनी का जादू है जो सदैव पाठक को आकर्षित करता है, बोधता है और परितृप्त करता है।
प्रमुख कृतियां जो विश्व स्तर पर पढ़ी गईसत्य से जुड़ जाता वो जोगी
सरस प्रवचनकार आचार्य श्री चन्दन मुनि जी के 24 प्रवचनों का संग्रह सत्य से जुड़ जाता वो जोगी- नाम से संकलित है। पूज्य आचार्य वर्य की अपनी मौलिक प्रवचन शैली थी। वे अपने सुमधुर तात्त्विक भजनों का संगान करते हुए प्रवचन किया करते थे। कंठ- से छलकते गीत और संगानकर्त्ता के मधुर व ओजस्वी कंठ स्वर के साथ मिलकर प्रत्येक श्रोता के लिये श्रवणीय, मननीय व आचरणीय प्रवचचनों की जो पीयूष धारा बहती बहती थी उसमें आकण्ढ निगमन होकर श्रद्धालु श्रोता रसविभोर हो जाते थे।उनके उन रस सिक्त तत्व तात्त्विक प्रवचनों को तदनुरूप ही संग्रहित किया गया है। व्याख्याओं के बीच प्रयुक्त अन्य संत कवियों के भजन, सक्तियाँ, पद दोहे और छोटी-छोटी कहानियाँ पाठकों को आकर्षण की डोरी में बांधें रखती हैं। फलतः पाठक कहीं शुल्क तत्त्वधान की व्याख्या से नीरसता का अनुभव किये बिना इन्हें पढ़ता चला जाता है। गंभीर तात्त्विक चिन्तन की गुत्थी को सुलझाकर जिज्ञासुओं के सम्मुख रखना पूज्यवर्य की अपनी निराली विशेषता है। इसमें व्याख्याता के हृदय की सहजता सरलता पग-पग पर झलकती है। उनकी अकृत्रिम वाणी एवं व्यवहार ने जटिलता के धागे सर्वत्र काट कर रख दिये है।पूज्य आचार्य भगवन्त जैन कुल में पैदा हुए जैन संघ में ही दीक्षित हुए, भगवान महावीर की वाणी उनकी साधना का आधार थी, उनकी आचार परम्परा ही चर्चा का आलम्बन थी फिर भी आग्रहपूर्ण रूढता और जड़ता उन्हें कही बांध नहीं पाई। उन्मुक्त मन की भावभूमि में सदैव नवीन स्फुरणाओं का अंकुरण होता है। इसलिये उन्होंने ढलती वय में विचारक्रान्ति का शंखनाद किया और सत्य के साथ निरन्तर जुड़ते चले गये। इसी की फलश्रुति है सत्य से जुड़ जाता वो जोगी।पुस्तक में 24 प्रवचनों का संकलन है। कुल पृष्ठ संख्या 334 है। पुस्तक के दो संस्करण प्रकाशित हो चुके है।
राम मेरे रूं रूं में रम जाये
भारतीय संस्कृति के प्राण, जन-जन के आस्था पुरूष मर्यादा पुरूषोत्तम राम की यशोगाथा से प्रारम्भ हुई यह पुस्तक पूज्य आचार्यवर्य के 27 सारगर्भित प्रवचनों को संकलन है। संकलन का अंतिम प्रवचन मुख सोहणा नहीं लगता राम बिना- भी भगवान राम की स्मृतियों को मुखर करता है। प्रवचन शैली वही है भजनों का संगाम और उनका विस्तृत विश्लेषण। व्याख्या में दोहे, सोरठे, संस्कृत के श्लोक, आगमिक गाथाएं और छोटे-छोटे कथा प्रसंग सहज शांत प्रवाह के रूप में बहते है और पाठकों की ज्ञान पिपासा शान्त करने के साथ-साथ अन्तर तम को अध्यात्म रस से भिगोते चले जाते हैं।पुस्तक के 327 पृष्ठ हैं तथा दो संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं।
भगवया एव मक्खायं (भगवान् ने ऐसा कहा ) -
भगवान् महावीर का दर्शन बहुत सुलझा हुआ जीवनदर्शन है। जन साधारण के जीवन में परिवर्तन कैसे आये, जीवन सहज शान्त कैसे बने, काम-क्रोध, मद-मोह की गांठे कैसे खुले और अन्त में मनुष्य किस प्रकार सुखपूर्ण जीवन जी सके यही महावीर के उपदेशों का लक्ष्य है। उन्होंने सर्वत्र सामान्य जन की भाषा में ही उपदेश दिया है।उनके उपदेश उनकी वाणी आगमों के रूप में संकलित है जो हमारे साधना मार्ग के दिग्दर्शक है। महावीर वाणी पर आघृत पूज्य गुरूदेव के प्रवचन भगवया एव मक्खांय नामक संग्रह में संकलित है। भगवद् वाणी का सरल हिन्दी में हृदय ग्राही विश्लेषण किया गया है। विषयों को स्पष्ट करने वाले श्लोक, दोहे तथा कथा प्रसंगर रोचक प्रेरक एवं तथ्यपूर्ण है। पुस्तक में 35 प्रवचन संकलित हैं।
खुले हैं द्वार प्रभु के-
पूज्य आचार्य भगवन्त के सरस भावपूर्ण 20 भजनों पर आधारित सहज प्रवाहपूर्ण आध्यात्मिक प्रवचनों का संकलन है खुले हैं द्वार प्रभु के। वस्तुतः परमात्मा के द्वार तो सदा खुले है। कोई आड़ नहीं, पर्दा नहीं, कोई विघ्न बाधा स्वरूप चौकीदार नहीं। हम दर्शन के लिये कितने उत्सुक हैं? यही विचारणीय है।
कवि ने लिखा है-
‘रैण दिवस हर दम खुली परमेसर री पोल।
जे दरसण री चावना तो थांरो आडो खोल।’
यदि सचमुख परमात्मा दर्शन की चाह है तो हमें अपना ही द्वार खोलना पड़ेगा। इन्हीं भावों का संदेश पुस्तक में दिया गया है।
धर्म रो नगदी है सौदो-
धर्म क्या है? धर्म का फल क्या है? धर्माचरण कैसे किया जाय? कौन सा धर्म श्रेष्ठ है? ऐसे ज्वलन्त प्रश्रों को समाहित करने वाले अठारह प्रवचनों का संकलन है धर्म रो नगदी है सौदो। अपनी उसी मौलिक शैली में राजस्थानी भाषा में निबद्ध सरस गीतों का संगाम करते हुए दिये गये व्याख्यान श्रोतृ वर्ग के लिये ज्ञान एवं प्रेरणा के स्त्रोत हैं।
धर्म क्या है? धर्म का फल क्या है? धर्माचरण कैसे किया जाय? कौन सा धर्म श्रेष्ठ है? ऐसे ज्वलन्त प्रश्रों को समाहित करने वाले अठारह प्रवचनों का संकलन है धर्म रो नगदी है सौदो। अपनी उसी मौलिक शैली में राजस्थानी भाषा में निबद्ध सरस गीतों का संगाम करते हुए दिये गये व्याख्यान श्रोतृ वर्ग के लिये ज्ञान एवं प्रेरणा के स्त्रोत हैं।
भावना भवनाशिनी-
मोक्ष मार्ग दान शील तप रूप त्रिवेणी के प्राण हैं भाव। भाव ही नाव को पार लगाने वाले हैं। भाव ही क्रिया रूप काया में स्थित चेतना है। अनित्य अशरण आदि भावनाओं से अनुप्राणित आत्मा परमात्म स्वरूप के साक्षात्कार में सक्षम हो सकती है। इसी तरफ संकेत करने वाले 16 सारपूर्ण प्रवचनों का संग्रह है भावना भव-नाशिनी। लगभग 182 पृष्ठों में भव परम्परा को नष्ट करने वाले गूढ रहस्यों को उजागर करते निबन्धों की संक्षिप्त पूर्णपीठिया डॉ. छगनलाल शास्त्री ने लिखी है।
मोक्ष मार्ग दान शील तप रूप त्रिवेणी के प्राण हैं भाव। भाव ही नाव को पार लगाने वाले हैं। भाव ही क्रिया रूप काया में स्थित चेतना है। अनित्य अशरण आदि भावनाओं से अनुप्राणित आत्मा परमात्म स्वरूप के साक्षात्कार में सक्षम हो सकती है। इसी तरफ संकेत करने वाले 16 सारपूर्ण प्रवचनों का संग्रह है भावना भव-नाशिनी। लगभग 182 पृष्ठों में भव परम्परा को नष्ट करने वाले गूढ रहस्यों को उजागर करते निबन्धों की संक्षिप्त पूर्णपीठिया डॉ. छगनलाल शास्त्री ने लिखी है।
रमो रे मन! वीतराग के संग-
जैन परम्परा के चौबीस तीर्थकरों से आध्यात्मिक विभूति की याचना और साधनापथ की उलझनों को सुलझाने की प्रार्थना में लिखे गये चौबीस गीतों पर आधारित प्रवचन ‘‘रमो रे मन! वीतराग के संग’’ के नाम से प्रकाशित हैं।उठो! जागो! जीवन को बदलो!
परम पूज्य आचार्य श्री चन्दनमुनि के चातुर्वार्षिक ग्वालियर प्रवास के दोरान बिरलानगर में दिये गये आत्माजागरण की प्रेरणा से आपूरित विविध विषयों को लेकर दिये गये प्रवचन पाठकों के व्यावहारिक जीवन को सुखी-शान्त बनाने हेतु मार्गदर्शक करने वाले हैं। पुस्तक प्रत्येक के लिए संग्रहणीय है।
सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम् -
आचार्य श्री चन्दनमुनि जी एक जैन सम्प्रदाय के अनुयायी परिवार में पैदा हुए। परम्परागत प्राप्त समुदाय में दीक्षित हुए। 58 वर्षो तक वहाँ साधनामय जीवन जिया। जिस सम्प्रदाय से वे सम्बद्ध थे उसका प्रचार किया लोगों को उससे जोड़ा। सुदीर्घ पदयात्राओं, अनेक ग्रन्थों के अनुशीलन एवं साधनाशील मनीषियों के संसर्ग से उन्हें चिन्तन-मनन के कुछ नवीन बिन्दु मिले। जिनके आधार पर उन्हें अनुभव हुआ कि वे परम्परागत रूप से जिन सिद्धान्तों का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं, वे कसौटी पर सत्य नहीं प्रतीत होते उनमें पुर्नविचार एवं नवीनता की गुंजाइश है। आग्रहों से मुक्त होकर उन्होंने उन बिन्दुओं पर बार-बार चिन्तन-मनन, अध्ययन-अनुशीलन किया। उस आत्ममंथन से प्राप्त नवीनत को उन्होंने प्रस्तुत किया है सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम् में। तेरापंथ सम्प्रदाय के साथ उनके सैद्धान्तिक मतभेद का प्रस्तुतीकरण भी ‘‘सर्वं’’ सत्ये प्रतिष्ठतम्’’ ही है। विचारधाराओं के द्वंद्ध में यह पुस्तक सत्य के दर्शन करवाती है। इसलिए इसकी मांग भी जबरदस्त रही। पुस्तक के 24 अध्याय है। तात्विक विवेचन के जिज्ञासुओं के लिये पुस्तक पठनीय, मननीय एवं संग्रहणीय है वहीं आने वाले महान परिवर्तन के लिए एक अनमोल दस्तावेज भी है।
Pls give me contact no of Chandan muni book publisher or contact person
ReplyDeleteGreat
ReplyDeletePlease give the book ‘Chandan muni ke bhajan’
ReplyDelete