Saturday, 15 November 2014

अर्हम् आश्रम- एक परिचय

अध्यात्म योगी आचार्य श्री चन्दनमुनि जी की तपोभूमि के रूप में जन-जन के लिये वन्दनीय स्थल रहा अर्हम् आश्रम जीवन के अन्तिम डेढ दशक में जहाँ पूज्य गुरूदेव ने तीव्र साधना की, ध्यान-जप और स्वाध्याय की अलख जगाई, अपने जीवन के क्षण-क्षण को परमात्मा के प्रति समर्पित करते हुए द्यन्य और सार्थक बनाया वह पुण्यशालिनी भूमि है अर्हम् आश्रम अपनी 91 वर्ष की पुरूषार्थ से स्नात यात्रा और 82 वर्षीय संयम यात्रा का जहाँ समुज्ज्वल समापन किया वह गौखमंडिता भूमि है अर्हम् आश्रम चन्दनमुनि के साथ नाम जुड़ने मात्र से जो द्यरा पवित्र हो गई, समृद्ध हो गई, विश्व विख्यात हो गई, उसके आस-पास, परिसर में बसे ग्राम भी अपने आपको गौरवान्वित अनुभव करते हैं।
अर्हम् आश्रम के सामने बीदासर और सुजानगढ़ को आपस में जोड़ने वाली सड़क जो 25 वर्ष पूर्व चुपचाप लेटी ऊंघती रहती थी अब लगातार गुजरते वाहनों से देर रात तक जागती रहती है। सड़के की दूसरी तरफ स्थित बरसाती नदी बरसात के समय बालू के टीलों के बीच से बड़े वेग के साथ दौड़ती हुई चलती है लेकिन वर्णऋतु जाते ही उसका स्थल को देखकर अनुमान भी नहीं होता कि यह पानी के पूर के साथ उफनने वाली नदी है। आश्रम के पीछे दूर तक कीकर की कंटीली झाड़ियों एवं जाल के वृक्षों का जंगल है। वह कंकरीली भूमि है। वर्षा के दिनों में वह  वन बहुत सुरम्य प्रतीत होता है लेकिन वैशाख-ज्येष्ठ में जब लू के थपेड़े लगते हैं तो सौतेली मां के हाथों पिटे बालक की तरह वीरान और गुमसुम नजर आने लगता है। आश्रम के दाहिनी और बीदासर रोड़ पर लोकदेवता श्री रामदेवजी का मंदिर स्थित है। यही मार्ग ग्राम गोपालपुरा तक जाता है। आश्रम से 1 कि.मी. दूर  जाकर ग्राम की सीमा शुरू होती है जहाँ बहुत बड़ा तालाब बना है। तालाब के किनारे सुन्दर मंदिर एवं छायादार वृक्षों के कारण बड़ा सुरम्भ वातावरण है। गांव में अधिकांश पक्के मकान है। कृषि ही जीविका का मूल आधार है। बालक-बालिकाओं की अध्ययन की सुन्दर व्यवस्था है। यहाँ के युवा श्रमजीवी एवं कार्यकुशल हैं।
आश्रम से बांयी और का मार्ग सुजानगढ़ की तरफ जाता है। यहाँ से 1 कि.मी. पर सुप्रसिद्ध डूंगर  बालाजी का मंदिर है। लगभग 2100 फुुट की ऊंचाई पर स्थित हुनुमान मंदिर श्रद्धालुओं का आस्था केन्द्र एवं पर्यटकों का आकर्षण केन्द्र है। यद्यपि पहाड़ के इर्दगिर्द चलने वाले स्टोन क्रेशरों  से उड़ने वाली धूल के कारण पर्यावरण इतना प्रदूषण मुक्त नहीं रह पाया है फिर भी महानगरीय पर्यावरण की अपेक्षा काफी स्वस्थ है।
प्रकृति गोद में स्थित अर्हम् आश्रम में प्रवेश करते ही महास्थविर धनमुनि पुस्तकायल का भवन दृष्टि पथ में आता है।

 पुस्तकालय भवन में नीचे बड़ा हॉल है, जिसमें सामने ही स्वाध्याय पुरूष पूज्य महास्थविर द्यनमुनि की प्रतिभा लगी है। हॉल का उपयोग अधिकतर सत्संग, बडे पूजा अनुष्ठान, सामूहिक जप आदि में होता है। दूसरी मंजिल पर पुस्तकालय है। जिसमें जैन एवं जैनेतर विभिन्न विद्वानों एवं विविध विषयों की पठनीय, संग्रहणीय पुस्तकों का संकलन किया गया है।
पुस्तकालय के पार्श्वभाग में ही पुज्य गुरूदेव आचार्य श्री चंदन मुनि की अष्ट कोणीय समाधी स्थल है जो गुरूदेव के अनंत में  समाहित हो जाने के बावजूद भी प्रतिपल हमारे बीच मौजूद होने का अहसास करवाता है
                                                                 
                                                                
पुस्तकायल भवन के पास ही जन-जन के आस्था केन्द्र महान् चमत्कारी तेबीसवें तीर्थकर चिन्तामणि पार्श्वनाथ का मनोहारी जिनालय बना है। द्यवल, उज्ज्वल शिखर बन्ध मंदिर में पांच तीर्थकर प्रतिभाओं के अतिरिक्त शासन सेवी देवों एवं परमप्रभावी भगवान् महावीर के प्रथम गणधर गौतम स्वामी की प्रतिमाएं भी प्रतिष्ठित हैं। मंदिर में दोनों समय विधिवत् पूजा होती है। मंदिर की प्रतिष्ठा के वार्षिकोत्सव पर धूमधाम से ध्वजारोहण की परम्परा का निर्वाह होता है। समय-समय पर अनेक बड़ी पूजाओं का आयोजन भी होता रहता है।

इसके पश्चात् स्थित भवन अर्हम् आश्रम का मुख्य भवन कहा जा सकता है जहाँ इसके अधिष्ठाता, प्रेरणा स्त्रोत अध्यात्म योगी आचार्य भगवन्त श्री चन्दनमुनि जी ने 15 वर्षो तक उग्र साधना की। यद्यपि पूज्य आचार्य श्री का सारा जीवन ही साधनामय रहा पर जीवन के ये आखिरी 15 वर्ष तो पूरी तरह अन्तमुखी साधना को समर्पित हो गये। इस अवधि में वे जन सम्पर्क कम से कम करना चाहते थे। उनका अधिकतम समय ध्यान, जप, स्वाध्याय आदि में ही व्यतीत होता था। इसी भवन के साथ संलग्न छोटा सा सुन्दर ध्यान कुटीर सहजतया हर व्यक्ति को ध्यान के लिये आमन्त्रित करता सा प्रतीत होता है। इस भवन में बिखरे साधना के अणु-परमाणु मन को सहज शांति और उल्लास से भर देते  हैं। भवन के जिस कक्ष में गुरूदेव विराजते थे वहाँ, उसी  पट्ट पर लगा उनका विशाल फोटो भावुक श्रद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र है। निष्प्राण फोटो से झांकते उनके मुखर नेत्र दर्शन मात्र से भक्तों की क्लान्ति हर लेते हैं।

इसी भवन से करीब 100 कदम की दूरी पर साध्वियों के प्रवास के लिये छोटा सा साताकारी आश्रम बना है। इसमें संघ प्रवर्तिनी साध्वीक्षी उषा कुमारी जी अपनी सहवर्तिनी साध्वियों के साथ साधनारत हैं। वर्तमान में यही भवन आश्रम की गतिविधियों के संचालन का केन्द्र भी है।
मुख्य भवन को इस भवन से जोड़ने वाली सड़क ही सीधी आगे बढकर अतिथि भवन में 10 कमरें आगन्तुक दर्शनार्थियों के प्रवास हेतु बने हैं। इसी भवन के एक भाग में गौतम भोजनशाला बनी है। यहीं आगन्तुकों एवं स्थायी निवासियों के लिये शुद्ध सात्विक  भोजन बनता है। रात्रि भोजन निषिद्ध है। लहसुन-प्याज आदि से रहित सादे भोजन को भक्त प्रसाद मानकर ग्रहण करते है। छोटे-बड़े, अमीर-गरीब एवं किसी प्रकार के जाति-पाति के भेदभाव बिना सभी समागत जन प्रेमपूर्वक उपलब्ध संक्षिप्त सुविधाओं का उपयोग करते हुए पारिवारिक वातावरण का सृजन करते हैं। 
अतिथि गृह की दायीं तरफ बने चार कमरों के साथ छोटे सुविधाजनक रसोईगृह भी बने हैं। जो यात्री अपना व्यक्तिगत भोजन बनाना चाहें उनके लिये वह स्थान स्वच्छ एवं सुखकर है।
आश्रम के द्वितीय द्वार के पास जलगृह (प्याऊ) बना है जो सड़क से गुजरने वाले पथिकों की जलसेवा के लिये सदैव तत्पर रहता है। जलगृह के साथ ही बने कक्ष में औषधालय चलता है। लगभग 21 वर्षो से चल रहे औषधालय में आयुर्वेदिक औषधालय पूर्णतया निःशुल्क है तथा प्रतिवर्ष सैकड़ों व्यक्ति इससे लाभन्वित होते हैं। 
अतिथि गृह के पीछे के भाग में आश्रम की गौओं के लिये टिनशेड बने हैं। चारे एवं जल की सुन्दर व्यवस्था है। शान्त-स्वतन्त्र वातावरण में पली गौएं आश्रमवासियों व आगन्तुकों के लिए दुग्ध की आपूर्ति करती हैं। दधि, धृत तथा छाछ भी उपलब्ध करवाती हैं।
आश्रम में जल संग्रहण हेतु पांच कुंड बने हैं। इनके अतिरिक्त उार दिग्भाग में 170 गुणा 70 फुट का विशाल पक्का तालाब बना है जो बरसाती नाले से जुड़ा है। 
प्रकृति की गोद में बसे इस आश्रम की स्थापना के प्रेरणाप्रदीप परमाराध्य आचार्य श्री चंदनमुनि साम्प्रदायिक संकीर्णता से सर्वथा दूर थे। इसलिए आश्रम से हर जाति,वर्ग,धर्म संप्रदाय व्यक्ति अंतरंग भावना से जुडे हुए है। यहां आकर सबको एक अद्भुत आत्मीय भाव की अनुभूति होती है।  आर्थिक दृष्टि से आश्रम किसी व्यक्ति विशेष अथवा समूह विशेष पर आश्रित नहीं है। गौतम भोजनशाला में 11000 की संरक्षक सदस्यता 5100 विशिष्ट सदस्यता एवं 1100 की साधारण सदस्यता रखी गयी है। इसके अतिरिक्त आगंतुक अपनी इच्छानुसार  कोई अनुदान कर सकते है। जिसे पिछले 25 वर्षों  से निःशुल्क  भोजन एवं आवास की सुविधा व्यवस्थित रूप से चल रही है। इसी तरह औषधालय  की सदस्यता के 100 प्रतिवर्ष अथवा 1200 प्रतिवर्ष ये दो विकल्प रखे गये है। इन्हीं संसाधनों  से प्राप्त राशि से आश्रम  की गतिविधियों का संचालन होता है।  यहां  प्राप्त सुविधा समान रूप से सभी को उपलब्ध है। विशिष्ट अथवा अतिविशिष्ट श्रेणी विभाजन नहीं है। जो कुछ उपलब्ध है वह सबका है,सबके लिए है।


No comments:

Post a Comment